सुंदरता का शिखर



मिलम ग्लेशियर

हिमालय के दुर्गम क्षेत्रों में एक है मिलम ग्लेशियर। उत्तरांचल के कुमाऊं क्षेत्र की यह धरोहर तिब्बत व नेपाल से सटे गांव मिलम के नाम से ही प्रसिद्ध है। यह सिर्फ ऊंचाई ही नहीं, सुंदरता की दृष्टि से भी शिखर है। मध्य हिमालय के इस अति सुंदर भाग में मुंसियारी से कुछ आसान और कुछ कठिन रास्तों पर चल कर आम तौर पर चार से पांच दिनों में पहुंचा जा सकता है। पिछले दो दशकों से यह रास्ता मिलम ग्लेशियर ट्रेक के नाम से लोकप्रिय है।

मुंसियारी इस ट्रेक का आधार स्थल है। मिलम ग्लेशियर यहां से पश्चिम उत्तर दिशा में 56 किमी दूर है। मिलम का यह रास्ता पुराने भारत-तिब्बत व्यापार मार्ग का ही एक भाग है। जहां कई जगह भुटिया लोगों के खंडहर हुए छोटे-बड़े गांव मिलते हैं। गाइड खुशाल राम के साथ छह सदस्यों का हमारा दल मुंसियारी से आगे बढ़ा। गोरी नदी के किनारे कुछ नीचे की ओर चलते हुए हम 11 किमी दूर लीलम गांव पहुंचे। एक होटल में रात बिताकर सुबह हम 15 किमी दूर बुगडयार की ओर चल दिए। गोरी गंगा के किनारे-किनारे। विशाल पत्थरों से टकराता गोरी का बहाव यद्यपि सबका ध्यान खींचता है, परंतु नदी के दोनों ओर पहाड़ों की घनी श्रृंखलाओं को बनाते हुए ईश्वर ने ऐसी तंगदिली दिखाई है कि खुली जगह के नाम पर थोड़ी दूरी के बाद कुछ दिखाई नहीं देता।

बुगडयार

शाम होने से पूर्व ही हम बुगडयार पहुंच गए। पोटिंग ग्लेशियर से आने वाली पोटिंग नदी का यहां गोरी से संगम होता है। बुगडयार में भारत तिब्बत सीमा पुलिस की चौकी है। मिलम जाने वाले हर शख्स की पहचान यहां पंजीकृत की जाती है। दूसरे दिन हमारा दल बुगडयार से आगे चला। रास्ते में काफी घने जंगल हैं। ऊबड़-खाबड़ व हलकी चढ़ाई वाले रास्ते पर हम चल रहे थे। बीच में नाहर देवी के एक छोटे से मंदिर के आगे नतमस्तक हो हम मापांग होते हुए शाम पांच बजे रीलकोट पहुंचे। चारों ओर पर्वतों से घिरे इस स्थान पर बहुत बड़ा मैदान है और कुछ खेत भी। यहां गोरी नदी घाटी में बहुत नीचे बहती है। गोरी गंगा नदी की घाटी अगले दिन पौ फटते ही हम नाश्ता लेकर मिलम की ओर चल पड़े। कुछ दूर चलने पर खुशाल ने बताया कि हम गोरी घाटी में प्रवेश कर चुके हैं। एक ओर घाटी का विहंगम दृश्य और अनुपम सुंदरता थी तो दूसरी ओर अत्यंत तेज चलती हवाएं चलना दूभर कर रही थीं। पता चला कि मिलम जाने के लिए बुर्फु गांव के पास गोरी नदी का पुल टूटा है। हमें बुर्फु से बहुत पहले किसी और पुल से नदी पार करनी पड़ी। हमारा रास्ता अब लंबा हो चुका था। एक खड़ी चढ़ाई को टेढ़े-मेढ़े रास्ते से चढ़कर हमने राहत की सांस ली। मिलम से लगभग दस किमी पहले हम बुर्फु पहुंचे।

बुर्फु की यादगार रात

वीरान बुर्फु गांव में खुशाल हमें एक घर में ले गया। वहां हवलदार गौकर्ण सिंह से हमारी मुलाकात हुई। भारतीय थल सेना से अवकाश प्राप्त यह हवलदार मुंसियारी में रहते हैं। मई से अक्टूबर मास तक यह अपने पैतृक गांव बुर्फु में आकर अकेले ही चाय तथा भोजन पकाकर ठहरने वालों को पिलाते-खिलाते हैं। गौकर्ण ने हमें चाय बनाकर दी और स्वयं भोजन बनाने में जुट गए। हम सब चूल्हे के पास बैठ गए। तिब्बत की घयानी मंडी के बारे में बताते हुए गौकर्ण ने कहा कि भारतीय व्यापारी कपड़े व किराने की चीजें तिब्बत ले जाते थे और वहां से ऊन, स्वाग, हींग, शिलाजीत व पसम लाते थे।

पागल नदी के पार

अगली सुबह हम बुर्फु से चले ही थे कि बिल्जु गांव के खंडहर दिखे। आगे चलकर बिल्जु के दूसरी ओर हमारे सामने पवित्र नंदा देवी शिखर तथा मिलम की ओर हदयोल शिखर अपनी सुंदरतम अवस्था में दिख रहे थे। बिल्जु के करीब एक नदी को लांघा तो खुशाल ने बताया कि इसे पागल नदी कहते हैं। बिल्जु ग्लेशियर से आने वाली इस नदी में अचानक पानी बढ़ जाता है। कुछ देर बाद हम तिब्बत से व्यापार के दिनों में प्रमुख केंद्र रहे मिलम गांव के पास थे। दो पहाड़ों को चीरती तिब्बत से आने वाली कोलीगाणा नदी हमें एक कामचलाऊ पुल से पार करनी थी। पहाड़ों के गलियारे से आती तूफानी हवाएं हमारे साहस की परीक्षा ले रही थीं। नदी पार पहुंचकर खुशाल ने बताया कि इस नदी के साथ-साथ चलते हुए चार दिन में तिब्बत पहुंच सकते हैं। हम मिलम पहुंचे तो दिन के तीन बजे थे। अनुभवी लोगों ने ग्लेशियर की स्थिति को देखते हए ऊपर जाने से मना किया। मई मास में एक तो ऊपरी बर्फ पूरी तरह गली नहीं थी, दूसरे ग्लेशियर के बीच में जो आकार बना था वह बेहद जोखिम भरा था। रस्सा, स्लिंग, कैराबीनर व आइस एक्स भी हमारे पास नहीं थे। फिर भी हम ग्लेशियर पर जाने के लिए आशावान बने रहे। मिलम में भारत-तिब्बत सीमा की बड़ी चौकी है। जहां अपनी पहचान बताना जरूरी है।

गांव में कुछ घरों में शाम के दीपक जल उठे। लगभग पांच सौ घरों के बीच कुछ ही प्रवासी ग्रामीण रह रहे थे जो लगभग सभी मुंसियारी से मिलम आते हैं। खंडहरों के बीच खुशाल ने एक लंबी दीवार वाला घर दिखाया जो कभी जेल थी। लंबी ऊंची जंगली घास सभी घरों के आसपास उगी थी। मिलम में दूसरे दिन सूर्योदय से पहले हम ग्लेशियर के मुख पर पहुंच चुके थे। हरदयोल चोटी के आसपास के नौ ग्लेशियरों से मिलकर बना विशाल मिलम ग्लेशियर आधा किमी चौड़ा व 27 किमी लंबा है। सूर्य की प्रथम किरणों में हरदयोल व त्रिशूली चोटियां सुनहले आवरण में लिपटी नई दुल्हन सी दिख रही थीं। इनका यह रूप कुछ पल के लिए ही देखने को मिलता है। खुशाल जो एक बार स्वयं ग्लेशियर के ऊपर जा चुका था, ने आगे बढ़ने की सहमति नहीं दी। हम ग्लेशियर पर कुछ किमी घूमकर लौट चले थे। सपनीली नदी की तरह ग्लेशियर के अति लुभावने दृश्य से हमारी दृष्टि हटती ही नहीं थी। मिलम ग्लेशियर मानो हमसे कह रहा था-तुम फिर आना।

समुद्रतल से ऊंचाई

समुद्रतल से मुंसियारी 2290 और मिलम ग्लेशियर 3438 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आधार पर इसकी ऊंचाई 3872 मीटर है।

ट्रेक

मुंसियारी से लीलम 11 किमी, लीलम से बुगडयार 15 किमी, बुगडयार से रीलकोट 10 किमी, रीलकोट से मिलम गांव 14 किमी और मिलम से ग्लेशियर (स्नाउट) लगभग 4 किमी दूर है। यहीं गोरी नदी का उद्गम होता है।

ठहरना-खाना

भोजन, जलपान और ठहरने की व्यवस्था सभी पड़ावों पर है। ढाबों में लगभग 30 रुपये में चावल और दाल खाने को मिल जाती है। कहीं-कहीं मैगी भी मिल जाती है। हलका समान लेकर चलें। एक्लीमेटाइजेशन की विशेष जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि ऊंचाई धीरे-धीरे बढ़ती है।

कैसे पहुंचें

उत्तर प्रदेश रोडवेज की बस दिल्ली से 24 घंटे में मुंसियारी पहुंचती है। बस दिल्ली अंतरराज्यीय बस अड्डे से सायं लगभग साढ़े छह बजे चलती है। आप टनकपुर तक रेलगाड़ी से भी यात्रा कर सकते हैं। वहां से मुंसियारी तक बसें तथा टैक्सियां मिलती हैं। टैक्सी में दो हजार रुपये से अधिक लगते हैं। अन्य रेलगाडि़यां भी हैं, जिनकी जानकारी लेकर चलना चाहिए।

कहां ठहरें

कुमाऊं मंडल टूरिस्ट कांप्लेक्स में टॉयलट सहित एक कमरा लगभग पांच सौ रुपये में तथा डॉरमिटरी में सौ रुपये प्रति व्यक्ति स्थान मिल जाता है। अन्यथा बस अड्डे के पास अच्छे होटलों में मरतोली फेमिली गेस्ट हाउस है, जहां लगभग 250 से 350 रुपये में अच्छा स्थान मिल जाता है।

पोर्टर, राशन व परमिट

पोर्टर लगभग 175 रुपये में मिल जाता है। चाहें 250 रुपये प्रतिदिन पर पोर्टर-कम-गाइड ले सकते हैं। साथ में भोजन भी। यह दरें कम ज्यादा हो सकती हैं। खच्चर व उसे रखने-संभालने वाले आदमी के साथ 250 रुपये से 300 रुपये तक मिल जाती है। राशन के बारे में टूरिस्ट कांप्लेक्स के मैनेजर या गाइड से समझ लेना चाहिए।

परमिट

सीमांत क्षेत्र होने से भ्रमण के लिए जिला मजिस्ट्रेट से परमिट ले लेना जरूरी है, जो मुंसियारी में मिल जाता है।

क्या लेकर चलें

गरम कपड़े, इनर, विंडचीटर, जुराबें, पैदल चलने के लिए अच्छे आरामदायक मजबूत जूते, टोपी, दास्ताने, चश्मा, कैमरा, फिल्में, बैटरी, पानी की बोतल, स्लीपिंग बैग आदि लें तथा मजबूत रूकसैक में पैक करें। वर्षा से बचाव के लिए पोलीथीन शीट, सोने के लिए स्लीपिंग बैग तथा नीचे बिछाने के लिए मैट्रिस भी लें। आवश्यक दवाइयां पास रखें।

Advertisement

0 comments:

 
Top