जैसलमेर: रेत पर बिखरे सुनहरे सपने




राजस्थान में थार की मरूभूमि के हृदय स्थल पर चस्पा जैसलमेर एक ऐसा रेतीला परिवेश है, जहां सुनहरे सपनों की फसलें खूब फलती-फूलती हैं। यह क्षेत्र मरूभूमि पर सुनहरी मरीचिका के समान है जहां एक बार जाने के बाद पर्यटक बार-बार जाने का मोह नहीं छोड़ पाते। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि यदुवंश का एक वंशज त्रिकुट पर्वत पर अपने विशाल साम्राज्य की नींव रखेगा। कालांतर में यह भविष्यवाणी सन् 1156 ई. में उस समय सच साबित हुई, जब यदुवंश के भट्टी राजपूत रावल जैसवाल ने लोदुरवा का अपना किला छोड़कर त्रिकूट पर्वत पर अपनी नई राजधानी की स्थापना की और उसका नाम जैसलमेर रखा।

उस समय भट्टी राजपूतों का लुटेरों के सरदारों के रूप में आतंक था। कहा जाता है कि वे अपने इलाके से गुजरकर दिल्ली पहुंचने वाले कारवां को रोककर उनसे चुंगी के नाम पर धन वसूली किया करते थे। बहुमूल्य मसालों व कीमती रेशम वस्त्रों से लदे ऊंटों का कारवां जब इस क्षेत्र से गुजरता था तो उनसे अच्छी-खासी आमदनी प्राप्त होती थी। इस राजस्व प्राप्ति का यह परिणाम निकला कि राजा ही नहीं नगर के अन्य व्यापारी भी तेजी से संपन्न होते चले गए। इस धन का प्रदर्शन राजस्थान के भू-भाग में विस्तारित सुंदरतम, नक्काशीदार हवेलियों और आलंकरिक कृतियों में सहज रूप से देखा जा सकता है। जैसलमेर चूंकि अलग-थलग था इसलिए यहां बाहरी प्रभाव लगभग नगण्य रहे। इसका एक प्रमाण यह भी है कि ब्रिटिश हुकूमत के दिनों में भी ब्रिटिश सत्ता से समझौते संबंधी दस्तावेजों पर जैसलमेर के शासकों ने सबसे अंत में अपनी स्वीकृति की मुहर लगाई। भारत के मुगल सम्राट शहंशाह अकबर का जन्मस्थान अमरकोट जैसलमेर अपनी नक्काशीदार हवेलियों और भगवान महावीर की मुख्य धारा को साकार करते जैन मंदिरों के लिए विश्व विख्यात है।

किले

जैसलमेर के दर्शनीय स्थलों में यहां का प्राचीनतम किला सबसे खास है। अपनी सुनहरी आभा से दमकता जैसलमेर का किला मीलों दूर से अपनी छाप छोड़ता है। इस किले की भव्यता व उत्कृष्टता से प्रभावित होकर भारत के महान फिल्मकार सत्यजीत राय ने सोनार किला नामक फिल्म भी बनाई थी। यह किला नगर के सामान्य भू-स्तर से लगभग 100 मीटर ऊपर स्थित है। किले की भारी-भरकम चाहरदीवारी के भीतर रहवासी बस्तियों का एक संपूर्ण क्षेत्र है। जैसलमेर किले का प्रमुख द्वार गणेश पोल है। किले के अन्य द्वारों के नाम सूरजपोल, भूतापोल, हवापोल आदि हैं। इन द्वारों के माध्यम से दरबार और जवाहर महल की चौकसी की जाती थी। किले के भीतरी घेरे में जैन मंदिरों का एक समूह भी है जिसमें 12वीं से 15वीं सदी में स्थापित मंदिरों का शिल्प देखने लायक है।

राजस्थान और जैसलमेर के दर्शनीय स्थलों में माणक चौक और हवेलियों का स्थान भी अपनी अलग अहमियत रखता है। यह स्थान स्थानीय मुख्य बाजार के कारोबार का केंद्र है। माणक चौक से उन गलियों में प्रवेश करना सुगम हो जाता है जहां नक्काशीदार हवेलियां अपने नाज-नखरों के साथ खड़ी होकर पर्यटकों को लुभाती हैं। नाथमाजी की हवेली, पटवों की हवेली और सालिम सिंह की हवेली जैसलमेर की प्रख्यात हवेलियों में शुमार की जाती हैं। जैसलमेर से लगभग छह किमी की दूरी पर अमर सागर झील आम के पेड़ों से आच्छादित एक सुंदरतम सम्मोहक स्थल हैं। यहां पर्यटक मंत्र-मुग्ध होकर खड़े रह जाते हैं। यहां स्थापित अत्यधिक आकर्षक नक्काशीदार जैन मंदिर इस स्थान की सुंदरता में और वृद्धि करता है। लगभग इतनी ही दूरी पर बड़ा बाग नामक स्थान कृत्रिम झील के किनारे सघन वृक्षों से घिरा राजवंश के शासकों का समाधिस्थल है। यहां स्थापित समाधियों की छतों में बारीक नक्काशी देखने लायक है। यही नहीं पूर्व सम्राटों की नक्काशीदार घुड़सवार मूर्तियों का जादू भी सिर चढ़कर बोलता है।

मूल सागर

जैसलमेर से लगभग 8 कि.मी. की दूरी पर स्थित मूल सागर नामक स्थान गर्मी के दिनों के लिए श्रेष्ठतम सैरगाह है। जैसलमेर के पूर्व नरेशों का छायादार कुंजों से भरा यह बाग चिलचिलाती गर्मी में पर्याप्त सुकून व राहत प्रदान करता है। जैसलमेर से लगभग 16 कि.मी. की दूरी पर लोद्रुवा नामक स्थान है। जैसलमेर की यह प्राचीन राजधानी है और जैन धर्मावलंबियों का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यहां स्थापित जैन मंदिरों में मुख्य प्रवेश द्वार पर उकेरी गई पत्थर की कलाकृतियां राजस्थान की शैली व कला का जीवंत नमूना हैं।

मंदिर की नक्काशीदार मेहराब वाला तोरण देखने लायक है। कल्पतरू वृक्ष की अनुकृति एक अन्य आकर्षण है जो पर्यटकों को लोद्रुवा आने के लिए विवश करती है। जैसलमेर से आकाल की दूरी लगभग 17 कि.मी. है। यह एक जीवाश्म उद्यान है जहां प्रागैतिहासिक काल के जंगल के अवशेष अब पाषाण रूप में देखे जा सकते हैं। जैसलमेर से सैंड एंड ड्यून्स की दूरी लगभग 42 कि.मी. है इस स्थान पर मरूभूमि के वास्तविक जीवन की मर्मस्पर्शी अंतरंग झलक मिलती है। यहां पर ऊंट की सवारी का लुत्फ भी उठाया जा सकता है।

राष्ट्रीय मरूद्यान

राष्ट्रीय मरूद्यान जैसलमेर से लगभग 45 कि.मी. दूर है। यहां दूर-दूर तक लहलहाते टीले और झाडि़यों से घिरी अरावली की पहाडि़यों के बीच राष्ट्रीय मरूद्यान को देखना एक रोमांचक अनुभव है। इस अनोखे अनुभव को उठाने के लिए पर्यटक यहां खिंचे चले आते हैं। जैसलमेर की सीमा पर बाड़मेर है, जिसकी दूरी लगभग 153 कि.मी. है। यह स्थान अपने नक्काशीदार लकड़ी के फर्नीचर और ठप्पों से छपाई के उद्योग के लिए सुप्रसिद्ध है। यहां पर लकड़ी के सामान पर की गई नक्काशी देखने लायक होती है।

जैसलमेर में फरवरी माह में आयोजित होने वाला मरू समारोह भी यहां आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। विविध रंगों, नृत्य संगीत, उत्सव और उल्लास से सराबोर यह समारोह तीन दिन चलता है। इनमें गौर और अग्नि नर्तक परंपरागत धुनों पर नृत्य करते हैं। नर्तकों का पद संचालन और भावभंगिमाएं देखने लायक होती हैं। पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता और मरू श्री प्रतियोगिता इस समारोह के अतिरिक्त आकर्षण हैं। यहां आने पर ऊंट की सवारी और रेतीले विस्तारों पर नृत्य का अनुभव किसी को भी आसानी से नहीं भूलता।

कैसे जाएं

जैसलमेर पहुंचने के लिए सड़क, वायु और रेलमार्ग तीनों ही उपलब्ध हैं। जैसलमेर से निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर है जिसकी यहां से दूरी लगभग 285 कि.मी. है। जैसलमेर जोधपुर से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है जबकि जोधपुर के लिए दिल्ली और कई अन्य जगहों से सीधी ट्रेनें हैं। राजस्थान के प्रमुख नगरों और शहरों से सड़क मार्ग द्वारा भी जैसलमेर पहुंचा जा सकता है। राजस्थान दर्शन के लिए चलने वाली विश्व प्रसिद्ध पैलेस ऑन व्हील्स नामक विशेष रेलगाड़ी भी एक दिन जैसलमेर में ही विश्राम करती है। यह रेलगाड़ी दुनिया भर से आने वाले विदेशी पर्यटकों की पसंदीदा सवारी है। असल में पैलेस ऑन व्हील्स राजसी ठाठ-बाट को बटोरे एक ऐसी महलनुमा रेलगाड़ी है जो चलते-फिरते सभी सुविधाएं उपलब्ध कराती है।

कहां ठहरें

जैसलमेर में होटल ढोला मारू, होटल हैरिटेज इन, होटल हिम्मतगढ़ पैलेस (सभी थ्री स्टार),नारायण निवास पैलेस (टू स्टार) तथा गोरनाब्ध पैलेस होटल नंबर वन आदि उपलब्ध हैं। जैसलमेर के रेलवे स्टेशन पर बाकायदा पर्यटक सूचना पटल स्थापित किया गया है जहां से जैसलमेर संबंधी जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं।

खास बात

जैसलमेर भले ही रेगिस्तान हो, लेकिन रेगिस्तान की रेत गरमियों की दोपहरी में जितनी गरम हो सकती है, उतनी ही ठंडी यह सरदियों की रातों में हो जाती है। इसीलिए रेगिस्तान में चूरू देश के मैदानी इलाकों में सबसे ठंडी जगहों में से एक माना जाता है। इसलिए जब जैसलमेर जाएं तो मौसम के हिसाब से पर्याप्त तैयारी पहनने-ओढ़ने की भी करके जाएं।

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