प्रकृति के कई ऐसे अहसास हैं जो हमें शहरों में रहते हुए नहीं मिलते। कंक्रीट के जंगलों में रहते हुए हमारी नई पीढ़ी इस धरती की खूबसूरती को सिर्फ कागजों या चित्रों में ही देखती है। कितना अच्छा हो जो उसे प्रकृति के उस अनछुए अहसास को नजदीक से महसूस करने का मौका मिल सके। इसके लिए गर्मियों की छुट्टियों से बेहतर समय भला कौन सा हो सकता है। यूं तो बच्चे परिवार के साथ घूमने जाते ही हैं और कभी-कभी स्कूलों के कैंप में भी शिरकत करते हैं लेकिन यहां हम जिक्र कर रहे हैं खास तौर पर बच्चों के लिए लगाए जाने वाले नेचर स्टडी व ट्रैकिंग कैंप का। यूथ हॉस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया हर साल इस तरह के कैंप आयोजित करती है।

पहला कुल्लू-मनाली के बीच दोभी में और दूसरा हिमाचल में ही डलहौजी में। लेकिन ये कैंप केवल 10 से 15 साल की उम्र के बच्चों के लिए हैं। इनमें बड़ों को इजाजत नहीं। दोनों ही कैंपों की फीस बराबर यानि 1300 रुपये प्रति बालक है। दस बच्चों का समूह हो तो उनके साथ एक शिक्षक (या अभिभावक) भी मुफ्त जा सकता है। वैसे कैंपों में देखभाल यूथ हॉस्टल के प्रशिक्षित लोगों के हाथों में होती है।

दोभी कुल्लू से 14 किलोमीटर दूर मनाली के मुख्य रास्ते पर है। वहीं डलहौजी के लिए वाया पठानकोट या चंबा जाना पड़ता है। बच्चों के लिए यह प्रकृति को समझने के साथ-साथ रोमांचक पर्यटन जैसा है। देश के कई हिस्सों के बच्चों के साथ मिल-जुलकर टेंटों में रहना होता है और रॉक क्लाइंबिंग, रिवर क्रासिंग को समझने व उसमें हाथ आजमाने का भी मौका मिलता है। इसके अलावा हिमालय की बर्फ से लदी चोटियों के सुंदर नजारे दिखलाती हुई कुछ दिन की ट्रैकिंग भी होती है। दोभी कैंप में जहां चंदरखणी दर्रे की स्नोलाइन को छूने का मौका मिलेता है वहीं डलहौजी कैंप में बच्चे एनएचपीसी की बिजली परियोजना को देख सकेंते हैं। कैंपों में दिन में अलग-अलग तरह की चिडि़याएं दिखाया जाता है तो रात में आकाश में जगमगाते तारों को पहचानना बतलाया जाता है। रात के खाने के बाद कैंपफायर होता है, जहां देश की भिन्न-भिन्न संस्कृतियों का मिलन होता है।

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