यह धरती अपने में जो अनगिनत रहस्य समाए हुए है, उन्हीं में से एक हैं गुफाएं। यह गुफाओं की अनोखी संरचना ही है जो वे हमेशा तिलिस्म या मायावी कथासंसार का प्रमुख पात्र रही हैं। जाहिर है कि गुफा से हमारा आशय यहां जंगल में किसी शेर-गीदड़ की मांद से नहीं है। बल्कि उन गुफाओं से है जो अपने आकार व संरचना के लिहाज से अद्भुत हैं। भले ही भूवैज्ञानिक उनकी संरचना की ठीक-ठीक वजह खोज पाने में सक्षम हो गए हों लेकिन आज भी ये गुफाएं आम लोगों के लिए उतने ही कौतुहल का विषय हैं। भारत की भौगोलिक विविधता की ही करामात है कि देश के कई हिस्सों में ऐसी कई गुफाएं हैं जो लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती हैं। इन्हीं में ऐलीफेंटा जैसी गुफाएं जहां मानवशिल्प की बेमिसाल कहानी पेश करती हैं तो कई गुफाएं ऐसी भी हैं जो खुद प्रकृति की बनाई बेइंतहा खूबसूरत तस्वीर हैं। आने वाली गर्मियों की छुट्टियों में ऐसी कुछ गुफाओं की सैर आपको एक अनूठी चीज तो दिखलाएगी ही, आपके बच्चों को नया ज्ञान भी उपलब्ध कराएगी।
बोरा गुफाएं
दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश में ऐसी कई गुफाएं हैं। इनमें बेलम व बोरा गुफाएं प्रमुख हैं। बोरा गुफाएं विशाखापत्तनम से 90 किलोमीटर की दूरी पर हैं। ये ईस्टर्न घाट में दो वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैली हुई हैं। दस लाख साल पुरानी ये गुफाएं समुद्रतल से 1400 फुट ऊंचाई पर स्थित हैं। भूवैज्ञानिकों के शोध कहते हैं कि लाइमस्टोन की ये स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट गुफाएं गोस्थनी नदी के प्रवाह का परिणाम हैं। हालांकि अब नदी की मुख्यधारा गुफाओं से कुछ दूरी पर स्थित है लेकिन माना यही जाता है कि कुछ समय पहले यह नदी गुफाओं में से होकर और उससे भी पहले इनके ऊपर से होकर गुजरती थी। स्टैलक्टाइट व स्टैलग्माइट उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें कोई खनिज पानी के साथ मिलकर प्राकृतिक रूप से जम जाता है। नदी के पानी के प्रवाह से कालांतर में लाइमस्टोन घुलता गया और गुफाएं बन गई। अब ये गुफाएं अराकू घाटी का प्रमुख पर्यटन स्थल हैं।
गुफाएं अंदर से काफी विराट हैं। उनके भीतर घूमना एक अद्भुत अनुभव है। अंदर घुसकर वह एक अलग ही दुनिया नजर आती है। कहीं आप रेंगते हुए मानो किसी सुरंग में घुस रहे होते हैं तो कहीं अचानक आप विशालकाय बीसियों फुट ऊंचे हॉल में आ खड़े होते हैं। सबसे रोमांचक तो यह है कि गुफाओं में पानी के प्रवाह ने जमीन के भीतर ऐसी-ऐसी कलाकृतियां गढ़ दी हैं कि वे किसी उच्च कोटि के शिल्पकार की सदियों की मेहनत प्रतीत होती है। कहीं चट्टानों में मसजिद बनी नजर आती है तो कहीं, गिरजाघर। कहीं मंदिर तो कहीं मशरूम। और भी न जाने क्या-क्या। इतने शिल्प कि उन्हें नाम देते-देते आपकी कल्पनाशक्ति भी थक जाए। एक जगह तो चट्टानों में थोड़ी ऊंचाई पर प्राकृतिक शिवलिंग इस तरह से बन गया है कि उसे बाकायदा लोहे की सीढि़यां लगाकर मंदिर का रूप दे दिया गया है। कहीं आपको जमीन को बांटती एक दरार भी नजर आ जाएगी तो कहीं आपको बड़े-बड़े खंभे या फिर लंबी लटकती जटाओं सरीखी चट्टानें मिल जाएंगी। गुफाओं से नदी की ओर जाने वाली धार में आपको अनगिनत चमगादड़ बैठी मिलेंगी। बताया जाता है कि गुफाओं के कुछ हिस्से ऐसे हैं जहां की पूरी पड़ताल नहीं हो पाई है और लिहाजा उनमें अभी लोगों को जाने की इजाजत नहीं है। इन गुफाओं को खोजने की कहानी भी काफी रोचक है।
किवंदती है कि उन्नीसवीं सदी के आखिरी सालों में निकट के गांव से एक गाय खो गई। लोग उसे ढूंढने निकले और खोजते-खोजते पहाडि़यों में गुफाओं तक पहुंच गए। बताया जाता है कि गाय गुफा के ऊपर बने छेद से भीतर गिर गई थी और फिर भीतर-भीतर होती हुई नदी के रास्ते बाहर निकल गई। गाय मिलने से ही नदी को भी गोस्थनी नाम दे दिया गया। बाद में किसी अंग्रेज भूशास्त्री ने गुफाओं का अध्ययन किया। इन्हें मौजूदा पहचान आजादी के बहुत बाद में मिली। अब ये देश की प्रमुख गुफाओं में से हैं। बोरा गुफाएं छत्तीसगढ़ में कोटमसर गुफाओं जैसी गर्म और दमघोंटू नहीं हैं। इसकी वजह इनकी भीतर से विशालता भी है।
कोटमसर की तरह यहां भीतर जाने वाले लोगों की संख्या पर कोई नियंत्रण लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। गुफा का प्रवेश द्वार काफी विशाल है। अंदर प्रकाश की व्यवस्था है और गाइड भी उपलब्ध हैं जो अंदर की सैर कराते हैं। गुफा का प्रबंधन आंध्र प्रदेश पर्यटन विभाग के हाथों में हैं। आसपास खाने-पीने की पर्याप्त व्यवस्था है। अराकू होते हुए पहाडि़यों में यहां आने का रास्ता भी बड़ा मनोरम है। गुफा के निकट तो रुकने की जगह नहीं लेकिन लगभग बीस किलोमीटर पहले अराकू घाटी में रुकने के लिए पर्याप्त संख्या में अच्छे होटल हैं। गुफा तो आप दिनभर में देख सकते हैं लेकिन अराकू घाटी में कुछ और स्थान हैं जो आपको कुछ दिन रोक सकते हैं। विशाखापत्तनम में रुककर भी दिन में गुफाएं देखी जा सकती हैं। विशाखापत्तनम प्रमुख बंदरगाह है और देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल, सड़क व वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।
बेलम गुफाएं
आंध्र में ही कुरनूल से 106 किलोमीटर दूर बेलम गुफाएं स्थित हैं। मेघालय की गुफाओं के बाद ये भारतीय उपमहाद्वीप की दूसरी सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफाएं हैं। इन्हें मूल रूप से तो 1854 में एच.बी. फुटे ने खोजा था लेकिन दुनिया के सामने 1982 में यूरोपीय गुफाविज्ञानियों की एक टीम ने इन्हें मौजूदा स्वरूप में पेश किया। हालांकि इनका रास्ता पुरातत्व विभाग ने खोज निकाला था। पहाडि़यों में स्थित बोरा गुफाओं के विपरीत बेलम गुफाएं एक बड़े से सपाट खेत के नीचे स्थित हैं। जमीन से गुफाओं तक तीन कुएं जैसे छेद हैं। इन्हीं में से बीच का छेद गुफा के प्रवेश द्वार के रूप में इस्तेमाल होता है। लगभग बीस मीटर तक सीधे नीचे उतरने के बाद गुफा जमीन के नीचे फैल जाती हैं। इनकी लंबाई 3229 मीटर है। इनके भीतर की जगह भी बोरा गुफाओं से ज्यादा विशाल है। अंदर ताजे पानी के कई सोते बहते हैं। इनकी संरचना इन्हें दुनियाभर के भूविज्ञानियों के आकर्षण का केंद्र बनाती हैं। ये गुफाएं सड़क व रेल मार्ग से कुरनूल से जुड़ी हैं जबकि सबसे नजदीकी हवाईअड्डा हैदराबाद है।
कुरनूल से ही सौ किलोमीटर दूर यागंती में, नरासाराओपट से 38 किलोमीटर दूर करमपुडी के निकट गुठिकोंडा में, विजयवाड़ा में मोगलराजपुरम और विजयवाड़ा से 8 किलोमीटर दूर उंडावल्ली में भी गुफाएं हैं। लेकिन बेलम व बोरा गुफाएं ही ऐसी हैं जो आकार में काफी बड़ी हैं और इस वजह से उनमें प्रकृति की करामात बेहद अनूठे स्वरूप में देखने में आती हैं।
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