मैसूर से करीब 16 किमी दूर कावेरी नदी में बने अंडाकार द्वीप पर बसा है श्रीरंगपट्टन। इस छोटे से शहर का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन जिस कारण यह शहर मशहूर है उसका प्राचीन इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है। शहर का महत्व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक दुखद हादसे और एक काबिल पर बदकिस्मत राजा की अंतिम लड़ाई से जुड़ा है। जी हां, जिस टीपू सुल्तान की गाथा हम सब स्कूलों कॉलेजों, घरों और पंचायतों में सुनते हुए पले-पढ़े हैं उसी टीपू सुल्तान ने इस शहर में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपनी जान दी थी। श्रीरंगपट्टन में एक किला और एक मकबरा है। किला टीपू से पहले शाह गंजम ने बनवाया था जिसमें फेरबदल करके टीपू ने उसे अंग्रेजों से लड़ने के काबिल बनाया। आज तो वैसे किले में कुछ खास देखने को है नहीं, फिर भी वे तहखाने देखे जा सकते हैं जहां अंग्रेज अधिकारी कैद करके रखे गए थे। साथ ही वह जगह भी देखी जा सकती है जहां घायल टीपू ने गिर कर जान दी।
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वास्तु के प्रेमी दरिया दौलत बाग का महल और टीपू संग्रहालय भी देख सकते हैं। संग्रहालय में टीपू का चारकोल से बना चित्र है और यही उनकी असली शक्ल की एकमात्र सच्ची झलक है। संग्रहालय सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुलता है और सरकारी छुट्टियों के दिन बंद रहता है। श्रीरंगपट्टन में गुंबज नाम की जगह है, जहां हैदर अली, उनकी पत्नी व टीपू दफन हैं। यह विशाल मकबरा पीले रंग से रंगा है। अंदर कब्रें काले पत्थर की हैं। अहाते में उस समय के राजपरिवार के सदस्यों की कब्रें भी बनी हुई हैं।
धार्मिक रुचि के लोग यहां के तीन मंदिरों व दो मसजिदों के दर्शन कर सकते हैं। किले के बैंगलोर गेट की ओर जामा मसजिद है और रेलवे स्टेशन से कुछ दूर पुरानी मसजिद है। शहर के तीन बड़े मंदिरों में श्रीरंगनाथ का मंदिर सबसे विशाल व प्रसिद्ध है। पूरे कर्नाटक का यह सबसे बड़ा मंदिर है। गोपुरम के बाद खंभों पर बना हॉल तीन या चार चरणों में बनकर तैयार हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में शेषशैया पर अधलेटे भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है।
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होयसल वंश के शासन के दौरान यहां नरसिम्हा मंदिर का निर्माण हुआ था और यह रंगनाथ मंदिर से कुल 100 गज की दूरी पर है। मंदिर में काले पत्थर की उग्र नरसिम्हा की सात फुट ऊंची प्रतिमा है। मंदिरों की लंबी कतार में निमिशिम्बा मंदिर का जिक्र जरूरी है। यह मां पार्वती का मंदिर है और मान्यता है कि भक्त कभी भी आकर कुछ मांगे तो उसके मन की मुराद जरूर पूरी होती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं को पढ़ने वालों ने नीलांचल का नाम तो सुना ही होगा। श्रीरंगपट्टन से छह किमी दूर स्थित इस पहाड़ी पर भगवान श्रीनिवास का मंदिर है। पहाड़ी के ऊपर से आप कावेरी और स्थानीय नदी लोकापवानी के संगम का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।
श्रीरंगपट्टन बंग्लौर से 123 किमी और मैसूर से 16 किमी दूर है। बंग्लौर हवाई यातायात से जुड़ा है और श्रीरंगपट्टन से यही सबसे करीबी हवाई अड्डा है। बैंगलोर से ट्रेन, बस और टैक्सी द्वारा श्रीरंगपट्टन की यात्रा की जा सकती है। शहर में दो अच्छे होटल हैं, फोर्ट व्यू रिजॉर्ट और दूसरा मयूरा खिर व्यू। मयूरा में कुल आठ कमरे हैं इसलिए अगर दोनों होटल भरे हों तो आप 16 किमी दूर मैसूर में भी जा कर रुक सकते हैं।
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