केशों के बीच ये दो-तीन रंगा गजरा मैसूर की स्त्रियों की खास पहचान है। आठ से लेकर अस्सी वर्ष तक की स्त्रियां बड़े शौक से ताजा फूलों के महकदार गजरे धारण करती हैं और इससे उनके चेहरों पर जो सौम्यता व संतुष्टि दिखती है, वही मैसूरवासियों की खास पहचान है। बाहर के उन पयर्टकों के लिए स्त्रियों के इस सुख के रहस्य को समझना कठिन है जो मैसूर को महज एक चंदन नगरी से अधिक नहीं समझते, पर सच्चे सैलानियों के लिए यह शहर महज एक नगरी नहीं है बल्कि उससे परे भी बहुत कुछ है।




चंदन की खुशबू से महकता शहर




भारत के सबसे सुंदर शहरों में एक कर्नाटक की राजधानी बंगलौर से महज 140 किमी की दूरी पर स्थित मैसूर एक ऐसा स्थान है जो एक बार देख लेने के बाद बार-बार याद आता है। चंदन की खुशबू से महकते इस शहर में चमेली, मोगरा, गुलाब की सुगंध इस तरह समाई है कि जो भी यहां आए सराबोर हो जाए। राजमहल, चंदन, चामुंडी हिल्स, अगरबत्तियां, इत्र व वृन्दावन गार्डन्स इतना कुछ यहां है कि सबके बारे में लिख पाना बहुत मुश्किल है। इस तरह मैसूर सिर्फ देखने की नहीं, बल्कि रच-बस जाने लायक शहर है।




मैसूर के चंदन से बनी छोटी-बड़ी चीजें, अगरबत्तियां व महकदार साबुन विश्व भर में प्रसिद्ध हैं। यहां अगरबत्ती की हर बत्ती हाथ से बनाई जाती है जिसे सामान्यतया औरतें और बच्चे ही बनाते हैं। मैसूर का पूरा बाजार ऐसी दुकानों से पटा है जहां हस्तकला की छोटी-बड़ी चीजें बेची जाती हैं। हाथी दांत, चंदन और रोजवुड से बना फर्नीचर मैसूर की खास पहचान है। सामान्य लकड़ी या विशुद्ध चंदन से बने बेशकीमती हाथी यहां की हर दुकान पर मिल जाएंगे।




मैसूर के महाराजा का महल मैसूर की खास शान है। यह महल 1907 में बनाया गया था। उस जमाने में इसकी लागत करीब 42 लाख रुपये आई थी। उस पुराने महल के अंदर रंगीन कांच और दर्पणों का बहुत ही खूबसूरत काम है। विशेष रूप से अंदर की छतें, कांच कला का अद्भुत नमूना हैं। फर्श में लकड़ी का बहुत सुंदर काम किया गया है। महल के एक हिस्से की दीवारों पर चित्रकारी है, जिनमें ब्रिटिश राज के दौरान मैसूर के जनजीवन का अपूर्व चित्रण है।




महल का अपना एक अलग मंदिर भी है जिसका गोपुरम महल की चारदीवारी के अंदर है। इसके परिसर में एक अलग म्यूजियम भी है। मैसूर के आसपास देखने को इतना कुछ है कि सब कुछ देखने के लिए कम से कम एक सप्ताह तो चाहिए ही। मैसूर के दक्षिण में नंजनगढ़ और अभूतपूर्व चामुंडी हिल्स हैं। लगभग तीन हजार फुट की ऊंची पहाड़ी पर चामुंडेश्वरी देवी का मंदिर है, जहां बस से घूमते हुए आधा दिन गुजारा जा सकता है। धार्मिक वृत्ति के लोग यहां पैदल आते हैं, जिनके लिए पहाड़ी की एक साइड में एक हजार सीढि़यों वाला रास्ता है। इस रास्ते में नंदी की एक बहुत बड़ी प्रतिमा भी है। पांच मीटर ऊंची यह प्रतिमा कर्नाटक की सबसे बड़ी नंदी प्रतिमाओं में गिनी जाती है। चामुंडेश्वरी देवी के मंदिर में सात मंजिल का 40 मीटर ऊंचा गोपुरम है जो मैसूर में काफी दूरी से देखा जा सकता है। चामुंडी हिल्स से पूरे मैसूर का विहंगम दृश्य बहुत सुंदर लगता है।




मैसूर से बांदीपुर और नागरहोल जैसे प्रसिद्ध अभयारण्यों की दूरी बस से डेढ़ घंटे में तय की जा सकती है। यहां का चर्च काफी पुराना है और अगर आपकी इस बात में दिलचस्पी है कि पिछली सदी में ईसाई कहां तक पहुंचे थे तो आप इस चर्च को अवश्य देखें। यह भारत की बड़ी चर्चो में से एक है।




श्रीरंगपट्टनम




मैसूर से सिर्फ 16 किमी की दूरी पर रंगपट्टनम है, जो कभी हैदरअली और टीपू सुलतान की राजधानी थी। 1799 में अग्रेज टीपू सुलतान को हराने के बाद ही दक्षिण भारत में अपनी जड़ें जमा सके थे। श्रीरंगपट्टनम में एक म्यूजियम और दरिया दौलत बाग देखने लायक जगहें हैं। यहां से थोड़ी दूरी पर रंगनाथिट्टू पक्षी अभयारण्य है। कावेरी नदी से कटकर एक द्वीप में समाहित यह अभयारण्य पूरे वर्ष कई तरह के पक्षियों से भरा रहता है। नौका से इस द्वीप के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाया जा सकता है। मैसूर प्रवास के दौरान शहर के शोर-शराबे से मन ऊबने लगे तो आप इस शांत वातावरण में आकर हरियाली, प्रकृति और पक्षियों के बीच एक अलग तरह के सुकून का अनुभव कर सकते हैं




मैसूर से करीब 16 किमी दूर कावेरी नदी में बने अंडाकार द्वीप पर बसा है श्रीरंगपट्टन। इस छोटे से शहर का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन जिस कारण यह शहर मशहूर है उसका प्राचीन इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है। शहर का महत्व भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक दुखद हादसे और एक काबिल पर बदकिस्मत राजा की अंतिम लड़ाई से जुड़ा है। जी हां, जिस टीपू सुल्तान की गाथा हम सब स्कूलों कॉलेजों, घरों और पंचायतों में सुनते हुए पले-पढ़े हैं उसी टीपू सुल्तान ने इस शहर में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपनी जान दी थी। श्रीरंगपट्टन में एक किला और एक मकबरा है। किला टीपू से पहले शाह गंजम ने बनवाया था जिसमें फेरबदल करके टीपू ने उसे अंग्रेजों से लड़ने के काबिल बनाया। आज तो वैसे किले में कुछ खास देखने को है नहीं, फिर भी वे तहखाने देखे जा सकते हैं जहां अंग्रेज अधिकारी कैद करके रखे गए थे। साथ ही वह जगह भी देखी जा सकती है जहां घायल टीपू ने गिर कर जान दी।

दौलत बाग का महल और टीपू संग्रहालय

वास्तु के प्रेमी दरिया दौलत बाग का महल और टीपू संग्रहालय भी देख सकते हैं। संग्रहालय में टीपू का चारकोल से बना चित्र है और यही उनकी असली शक्ल की एकमात्र सच्ची झलक है। संग्रहालय सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुलता है और सरकारी छुट्टियों के दिन बंद रहता है। श्रीरंगपट्टन में गुंबज नाम की जगह है, जहां हैदर अली, उनकी पत्नी व टीपू दफन हैं। यह विशाल मकबरा पीले रंग से रंगा है। अंदर कब्रें काले पत्थर की हैं। अहाते में उस समय के राजपरिवार के सदस्यों की कब्रें भी बनी हुई हैं।

धार्मिक रुचि के लोग यहां के तीन मंदिरों व दो मसजिदों के दर्शन कर सकते हैं। किले के बैंगलोर गेट की ओर जामा मसजिद है और रेलवे स्टेशन से कुछ दूर पुरानी मसजिद है। शहर के तीन बड़े मंदिरों में श्रीरंगनाथ का मंदिर सबसे विशाल व प्रसिद्ध है। पूरे कर्नाटक का यह सबसे बड़ा मंदिर है। गोपुरम के बाद खंभों पर बना हॉल तीन या चार चरणों में बनकर तैयार हुआ है। मंदिर के गर्भगृह में शेषशैया पर अधलेटे भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है।

नरसिम्हा मंदिर

होयसल वंश के शासन के दौरान यहां नरसिम्हा मंदिर का निर्माण हुआ था और यह रंगनाथ मंदिर से कुल 100 गज की दूरी पर है। मंदिर में काले पत्थर की उग्र नरसिम्हा की सात फुट ऊंची प्रतिमा है। मंदिरों की लंबी कतार में निमिशिम्बा मंदिर का जिक्र जरूरी है। यह मां पार्वती का मंदिर है और मान्यता है कि भक्त कभी भी आकर कुछ मांगे तो उसके मन की मुराद जरूर पूरी होती है।

हिंदू पौराणिक कथाओं को पढ़ने वालों ने नीलांचल का नाम तो सुना ही होगा। श्रीरंगपट्टन से छह किमी दूर स्थित इस पहाड़ी पर भगवान श्रीनिवास का मंदिर है। पहाड़ी के ऊपर से आप कावेरी और स्थानीय नदी लोकापवानी के संगम का विहंगम दृश्य देख सकते हैं।

श्रीरंगपट्टन बंग्लौर से 123 किमी और मैसूर से 16 किमी दूर है। बंग्लौर हवाई यातायात से जुड़ा है और श्रीरंगपट्टन से यही सबसे करीबी हवाई अड्डा है। बैंगलोर से ट्रेन, बस और टैक्सी द्वारा श्रीरंगपट्टन की यात्रा की जा सकती है। शहर में दो अच्छे होटल हैं, फोर्ट व्यू रिजॉर्ट और दूसरा मयूरा खिर व्यू। मयूरा में कुल आठ कमरे हैं इसलिए अगर दोनों होटल भरे हों तो आप 16 किमी दूर मैसूर में भी जा कर रुक सकते हैं।

Advertisement

0 comments:

 
Top