भारत अपनी विविधताओं एवं विषमताओं के लिए विश्व प्रसिद्ध है। धर्मों से लेकर व्यंजनों की अलग अलग विशेषताएँ आपको एक ही जगह मिल जाएँगी, भारत में। अपनी इसी विशेषता के साथ उत्तरी भारत में एक स्थान है, जो दो धर्मों का एक ही पवित्र तीर्थस्थल है- सिक्ख धर्म और हिंदू धर्म का पवित्र स्थल मणीकरण। मणीकरण, हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले के भुंतर में स्थित है। भुंतर के उत्तरपूर्वी हिस्से में पार्वती नदी के पार्वती घाटी पर स्थित यह छोटा सा नगर हर साल कई मनाली और कुल्लू के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, गर्म पानी के झरने और तीर्थस्थान का केंद्र होने की वजह से। पार्वती घाटियों के बीच बहती पार्वती नदी मणीकरण में हिंदुओं के कई मंदिर और सिक्खों के कई गुरुद्वारे हैं। 



हिंदुओं के अनुसार मनु(इंसानों के जनक) ने भयंकर बाढ़ के बाद, यहाँ इंसानों की उत्पत्ति की थी और इसे पवित्र स्थल बनाया था। हिंदुओं के कई देवों, जैसे राम, कृष्णा और विष्णु के मंदिर यहाँ स्थित हैं। इस जगह को मुख्य तौर पर इसके गर्म पानी के झरने और उसके आस पास के अद्भुत प्राकृतिक दृश्य के लिए जाना जाता है। इस झरने से संबंधित दोनो ही धर्मों की अलग अलग कथाएँ भी प्रचलित हैं। मणीकरण  सिखों द्वारा प्रचलित कथा: कथानुसार, तीसरे उदासी के दौरान, सिक्खों के संस्थापक गुरु नानक जी अपने सबसे पहले शिष्य भाई मर्दाना के साथ इस स्थान पर आए, जहाँ मर्दाना को बहुत ज़ोरों की भूख लगी। गुरु नानक जी ने उसे लंगर से खाना लाने को कहा। वहाँ समस्या हुई कि खाने को पकाने के लिए आग की सुविधा नहीं थी। नानक जी ने मर्दाना को वहीं पर रखे बड़े से पत्थर को उठाने के लिए कहा, जिनके आदेशानुसार उसने पत्थर उठाया, जहाँ से गर्म झरने की उत्पत्ति हुई। नानक जी के कहे अनुसार वो बिली हुई रोटियों को उस झरने में डालता गया पर सारी डूबती गयीं। मणीकरण में स्थित गुरुद्वारा  निराश मर्दाना को देख कर नानक ने उससे ईश्वर को सच्चे मन से याद करने के लिए कहा और कहा अगर उसकी रोटियाँ उसे पानी में तैरती हुई दोबारा प्राप्त हो जाएँगी तो उनमें से एक रोटी वो ईश्वर को चढ़ाएगा। मर्दाना द्वारा ईश्वर को सच्चे दिल से याद करे जाने पर झरने में डाली गयी सारी रोटियाँ पक कर झरने में तैरने लगीं। गुरुनानक के अनुसार जो भी ईश्वर के नाम पर इस झरने में कुछ भी दान करता है, वह चीज़ झरने में डूबने की बजाए तैरती रहती है।


 गुरुद्वारे का आंतरिक दृश्य  हिंदुओं द्वारा प्रचलित कथा: कथानुसार, भगवान शिव जी और देवी पार्वती, जिन्होंने वहाँ लगभग 1100 साल निवास किया, एक दिन उस स्थल के भ्रमण पर थे। भ्रमण के दौरान देवी पार्वती जी का एक मणि रत्न जल की धारा में गिर गया। अपने रत्न के खो जाने से दुखी होकर उन्होंने शिव जी को उसे खोजने के लिए कहा। भगवान शिव जी ने अपने सारे सेवकों को उस रत्न को खोजने का आदेश दे दिया, पर कोई भी उसे खोजने में सफल नहीं हुआ। पर्यटकों में सबसे ज़्यादा प्रसिद्ध गर्म पानी का झरना  Gupta इस बात से क्रोधित होकर भगवान शिव जी ने अपनी तीसरी आँख खोल ली, जिसे पूरे विश्व के नष्ट होने का संकेत माना जाता है। डर के मारे बाकी सारे देवी देवताओं ने, नागों के राजा शेषनाग से उन्हें शांत कराने के लिए अनुग्रह किया। शेषनाग ने अपनी फुंफ़कार से गर्म पानी के धारा की उत्पत्ति की। इस धारा की उत्पत्ति से सारे क्षेत्र में गर्म पानी का छिड़काव हुआ जिनसे देवी पार्वती जी के खोए हुए रत्न की तरह कई रत्नों की उत्पत्ती हुई। देवी पार्वती अपना रत्न पाकर बहुत खुश हुईं और शिव जी का गुस्सा भी शांत हो गया। 


मणीकरण आज भी झरने का पानी बिल्कुल गर्म रहता है, जो की लोगों में बहुत शुभ माना जाता है। इस तीर्थस्थान की बहुत ज़्यादा मान्यता है। ऐसा कहा जाता है कि अगर आपने इस तीर्थ स्थल की यात्रा कर ली तो आपको काशी की यात्रा करने की कोई ज़रूरत नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि, इस झरने का पानी इतना गर्म होता है कि, अगर आप कपड़े में बाँध कर कच्चे चावल डालो तो कुछ ही समय में वो पक जाएँगे। झरने का यह जल औषधि के रूप में भी उपयोग किया जाता है।



 मणीकरण में स्थित विष्णु मंदिर मणीकरण पहुँचें कैसे? सड़क यात्रा द्वारा: मणीकरण कुल्लू से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर है और मनाली से लगभग 85 किलोमीटर। हिमाचल प्रदेश के कई मुख्य शहरों से यहाँ तक के लिए कई बसों की सुविधा उपलब्ध है। रेल यात्रा द्वारा: मणीकरण का नज़दीकी रेलवे स्टेशन शिमला है, जो यहाँ से लगभग 106 किलोमीटर की दूरी पर है। हवाई यात्रा द्वारा: मणीकरण का नज़दीकी हवाई अड्डा भुंतर है, जहाँ से आप टैक्सी द्वारा आराम से यहाँ पहुँच सकते हैं।

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