पृथ्वी पर पृथ्वी से ही बनी विश्व की सबसे बड़ी और अत्यंत सुंदर प्राकृतिक आकृति है हिमालय पर्वत। कभी इस पर्वत की जगह टेथिस सागर लहराता था। इसीलिए इसकी सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट का दूसरा नाम सागरमाथा है। आज भी इसकी ऊंची श्रृंखलाओं में समुद्री जीवाश्म मिलते हैं। इसके सौंदर्य का वर्णन हुआ तो बहुत है, पर उसे ठीक-ठीक अभिव्यक्ति दे पाना शायद शब्दों की क्षमता से परे है। इस सौंदर्य के चाहने वाले लाखों ट्रेक्स, पर्वतारोही और बुद्धिजीवी उसे बार-बार आंखों में भर लेने के लिए जोखिम उठाकर भी यहां आते हैं। इसमें कई जगहों पर आज भी ट्रेकिंग करके ही जाना होता है। कई स्थानों पर जाने के लिए नई दिल्ली में आनंद निकेतन स्थित भारतीय पर्वतारोहण संस्थान से अनुमति भी जरूरी है। संकट में सहायता इसके ही जरिये मिलती है।

हिमालय की ट्रेकिंग भारत के अलावा पड़ोसी देशों से भी की जाती है। अत: इसकी सीमाओं और दूसरों देशों के आव्रजन नियमों के साथ ही ट्रेकिंग के रास्तों की जानकारी भी जरूरी है। आठ देशों- रूस, चीन, अफगानिस्तान, भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, बर्मा से घिरा हिमालय पर्वत दक्षिण एशिया में लंबाई में 2400 किमी तक फैला हुआ है। रूस में पामीर पर्वतश्रृंखला से शुरू होकर सिंधु के पश्चिम और ब्रह्मपुत्र के पूर्व में इस पर्वत का दूसरा छोर है। उत्तर-पश्चिम में इसकी चौड़ाई 300 किमी है। इधर कराकोरम और हिंदुकुश पर्वत तथा बर्फ से ढकी चोटियां हैं जो यूरोप, अफ्रीका और अमेरिका की पर्वत चोटियों से ऊंची हैं। भारत में ट्रेकिंग के नजरिये से जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तरांचल प्रमुख हैं।

ट्रेकिंग के लिए जगह और मार्ग चुनने से पहले बेहतर होगा कि आप अपनी रुचि व क्षमताओं का आकलन ठीक से कर लें। अगर आपको ऊंचाई पर चढ़ने में कोई दिक्कत नहीं है और लंबे समय तक पहाड़ों में भटकने के शौकीन हैं, तब तो लंबे रास्ते चुनें, वरना 10000 हजार फुट से अधिक ऊंचाई और 40 किमी से अधिक लंबा रास्ता चुनना मुफीद नहीं है।

कश्मीर का अनूठा सौंदर्य

प्राकृतिक सौंदर्य के प्रेमियों के बीच जम्मू-कश्मीर की लोकप्रियता तो विश्वव्यापी है ही, ट्रेकर्स भी इसे बहुत पसंद करते हैं। यहां ट्रेकिंग को तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं। पहला हिमालय के निचले क्षेत्र जिन्हें शिवालिक के नाम से जाना जाता है। दूसरी श्रेणी में कुछ ऊंचे क्षेत्र जैसे पहलगाम, गुलमर्ग और सोनमर्ग आदि आते हैं। तीसरी श्रेणी में जंसकार घाटी आती है, जहां कठिन चढ़ाइयां, सूखा और कठोर जीवन मिलता है। घाटी के दक्षिण-पश्चिम में पीर पांजाल श्रृंखला है, जहां कई ऊंची-ऊंची चोटियां हैं। बनिहाल पास और पांगी श्रृंखला है। कश्मीर घाटी में हरमुख और कोल्हाई पर्वतों के आसपास कई छोटे-बड़े ट्रेकिंग रूट्स पर जाया जा सकता है। कोल्हाई पर्वत लिद्दर घाटी के ठीक ऊपर है। ट्रेकिंग के लिए सिंध व लिद्दर घाटी प्रमुख क्षेत्र हैं।

लिद्दर घाटी दुनिया की सबसे सुंदर घाटियों में से एक है। यहां पहलगाम में ठहरा जाता है जो कि भेड़-बकरियां चराने वालों का गांव है, परंतु पर्यटन की दृष्टि से बहुत सुंदर ढंग से विकसित है। श्रीनगर से 96 किमी दूर यह स्थान 2134 मीटर की ऊंचाई पर है।

लिद्दर घाटी से सिंध घाटी में भी जाया जाता है। इसकी कई जगहों से लद्दाख में भी ट्रेकिंग पर जाया जा सकता है। जैसे पहलगाम से पान्नीकर जो सुरू नदी की घाटी में है।

सिंध घाटी कश्मीर घाटी की सबसे लंबी (96 किमी) शाखा है। झीलों, नदियों व ग्लेशियरों से भरी इस घाटी में छोटे-बड़े कई ट्रेकिंग रूट्स हैं। प्रकृति का अत्यंत सुंदर नजारा देखते हुए एक-दो दिन से लेकर दो सप्ताह तक की ट्रेकिंग कर सकते हैं।

सिंध और लिद्दर दोनों ही घाटियों में ट्रेकिंग हेतु बेसकैंप के लिए श्रीनगर, गुलमर्ग और सोनमर्ग सही जगहें हैं। श्रीनगर से ट्रेकिंग पर जाने के कई छोटे-बड़े रूट्स हैं। इनमें गंगबल झील व नारानाग (54 किमी) प्रमुख हैं। इसके अलावा हरमुख पर्वत 24 किमी और काउंसर नाग 72 किमी है। एरिन के लिए ट्रेकिंग रूट 80 किमी है। श्रीनगर क्षेत्र में ही सरबल से कुंडसर झील जा सकते हैं।

लंबी राहों पर चलकर

लद्दाख प्राय: शुष्क क्षेत्र है जो विशाल ग्रेटर हिमालय क्षेत्र में आता है। कहीं-कहीं कुछ नदियों के किनारों पर हरियाली देखने को मिलती है। लद्दाख को चंद्रमा की धरती, बौद्धमठों, भिक्षुओं और पौराणिक कथाओं का स्थान भी कहा जाता है। यहां दो मुख्य जिले हैं। लेह और कारगिल। भारत में लद्दाख सबसे ऊंचा क्षेत्र है। यहां बहुत ऊंची-ऊंची चोटियां और विशाल ग्लेशियर हैं। यहां मुख्य ट्रेकिंग रूट्स हैं: लेह से सुरू घाटी होते हुए कारगिल, कारगिल से जंसकार और फिर मनाली, कारगिल से सुरू-वर्धवान घाटी और फिर पहलगाम, लेह- मारखा घाटी-जंसकार। ये सभी ट्रेक काफी लंबे हैं। सोनमर्ग से जोजीला-द्रास-कारगिल-मुलबेख-लामायुरू और फिर लेह वाला ट्रेक भी बहुत लंबा और कठिन है। इस क्षेत्र में पानी की भी बहुत कमी है। अगर और लंबे ट्रेक पर जाना चाहें तो कारगिल से पदम जा सकते हैं। दूरी 240 किमी है। पदम स्थान जंसकार घाटी का हेडक्वार्टर है। लद्दाख में नुब्रा घाटी एक खास जगह है। इसके पास कई अंतरराष्ट्रीय सीमाएं हैं-चीन, पाकिस्तान, रूस और कजाकिस्तान आदि। सियाचिन बिलकुल समीप है और ट्रेकिंग का यहां एक विशेष अनुभव है।

इतिहास की खोज में

अगर आपकी रुचि इतिहास में हैं और आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं तो हिमाचल प्रदेश आपके लिए सर्वोत्तम है। यूं प्राकृतिक सुंदरता की यहां भी कोई कमी नहीं है, लेकिन इतिहास और भू विज्ञान के अध्ययन का जैसा मौका आपको यहां ट्रेकिंग के दौरान मिलेगा वह और कहीं भी दुर्लभ है। इस लिहाज से हिमाचल प्रदेश का सर्वोत्तम ट्रेक है चंद्रखानी पास ट्रेक। मनाली से शुरू होने वाला यह ट्रेक मलाना व मनिकर्ण होते हुए बिजली महादेव तक जाता है। यह ट्रेक ऐतिहासिक, सामाजिक और भू-विज्ञान की दृष्टि से बहुत रुचिकर है। इसमें 3657 मीटर ऊंचा चंद्रखानी पास लांघ कर मलाना गांव पहुंचते हैं। वहां के लोग खुद को अलेक्जेंडर (सिकंदर) के साथ आया हुआ मानते हैं। इनके अपने कानून हैं। ये दूसरे लोगों से घुलते-मिलते भी नहीं हैं।

इसके अलावा कुल्लू-मनाली क्षेत्र में कई और ट्रेक हैं। चंद्रखानी से मलाना (7 किमी), मनाली से रूमसू (24 किमी), रूमसू से चंद्रखानी (8 किमी), मलाना से रशोल (13 किमी), रशोल से कसोल (8 किमी), कसोल से जरी (15 किमी) आदि। जरी में विश्राम के लिए जगह है। यह पार्वती नदी के ऊपर है। जरी से 11 किमी का एक और ट्रेक भुंतर तक है। वैसे मनाली से भुंतर तक वाहन से भी जाया जा सकता है।

मनाली से बनजार-जलोरी पास और फिर सिराज घाटी तक 15 दिन का ट्रेक है। कुल्लू घाटी से लाहौल घाटी का 16 दिन का ट्रेक है, जिसमें हमता पास (4268 मीटर) जैसा रास्ता तय करना पड़ता है। लाहोल घाटी में चंद्रताल के रास्ते बारालाचा पास का ट्रेक है। इसमें मनाली से छिक्का 13 किमी, छिक्का से छतरू 16 किमी चलकर और हमता पास लांघ कर लाहोल घाटी में पहुंचते हैं। फिर छतरू से 16 किमी चलकर आगे छोटा दरारा और वहां से बातल पहुंचते हैं, जो कुंजुम पास के नीचे हैं। बातल से चंद्रताल 18 किमी दूर है। समुद्रतल से 4270 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद इस जगह से समुद्र टापू ग्लेशियर और मुरकिला पर्वत श्रृंखला के दृश्य दिखते हैं। चंद्रताल से 12 किमी ट्रेकिंग करके टोकपो योंगमा पहुंचते हैं। लाहोली भाषा में नदी को टोकपो बोलते हैं। योंगमा का अर्थ है नीचे और गोंगमा का अर्थ है ऊपर। 11 किमी चलकर फिर टोकपो गोंगमा पहुंचते हैं। यहां से 10 किमी चलकर बारालाचा पहुंचते हैं। कई दिन का यह ट्रेक बहुत थका देने वाला है। क्योंकि लाहोल घाटी में ऑक्सीजन मनाली की तुलना में कम होता है। यही ट्रेक आगे बारालाचा से छतरू-ग्रामफू-मढ़ी और फिर मंडी पहुंचता है।

किन्नर कैलाश के दर्शन

लंबे रास्ते चुनना चाहें तो धर्मशाला के निकट धौलाधार पर्वतश्रृंखला लांघकर भरमौर और चंबा जाया जा सकता है। धर्मशाला से 15 किमी चलकर त्रियूंड और त्रियूंड से 7 किमी ट्रेकिंग करके लाकागोट पहुंचते हैं, जो इंद्रहार पास के नीचे है। वहां से छाता (10 किमी), छाता से कुआरसी (12 किमी), फिर 16 किमी ट्रेकिंग के बाद चनोटा और चनोटा से 40 किमी का ट्रेक भरमौर का किया जा सकता है। इसी रूट पर ट्रेकिंग करते हुए पवित्र मनीमहेश झील पहुंचा जाता है। यह बड़ा रोचक ट्रेक है। चनोटा न जाकर होली गांव के रास्ते मनीमहेश जाते हैं। जो इस क्षेत्र का प्रमुख तीर्थ है और यहां मां पार्वती के नाम से गौरी कुंड भी है। इस रास्ते में एक ग्लेशियर भी है।

उधर शिमला से आप किन्नौर के लिए जा सकते हैं। किन्नौर का कुछ क्षेत्र आज भी इनर लाइन अर्थात् सामरिक दृष्टि से वर्जित क्षेत्र में आता है। परंतु अब सांगला, स्पीति, रोपा, बासपा, टिडोंग और भाबा घाटियों की ट्रेकिंग की जा सकती है। सांगला घाटी में छितकुल गांव से आगे नहीं जाया जाता। तिब्बत से सटे इस क्षेत्र में लियो तथा पारगियल (6816 मीटर और 6791 मीटर) दो जुड़वां चोटियां हैं। रिकॉग पियो किन्नौर का हेडक्वार्टर है। यहां से किन्नर कैलाश के दर्शन होते हैं तथा तीन दिन ट्रेकिंग करके 19000 फुट की ऊंचाई पर शिवलिंग के दर्शन तथा पवित्र यात्रा की जाती है।

शिव के नित्य मार्ग पर

उत्तरांचल में पंचकेदार सबसे लोकप्रिय ट्रेक है। इसमें 14 दिन का समय लगता है। भगवान शिव को पांच मंदिरों में अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। ये सभी मंदिर अलग-अलग घाटियों में हैं। ये घाटियां हैं-केदारनाथ घाटी (5384 मीटर), मदमहेश्वर घाटी (3289 मीटर), तुंगनाथ घाटी (3810 मीटर), रुद्रनाथ घाटी (2286 मीटर) और कल्पनाथ घाटी (2134 मीटर)। ये सभी स्थान उत्तरांचल के गढ़वाल क्षेत्र में हैं। इसके अलावा कुछ और महत्वपूर्ण ट्रेक भी हैं।

रूपकुंड ट्रेक : रूपकुंड झील त्रिशूल पर्वत पर 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कुमाऊं क्षेत्र में धराली से इसके लिए रास्ता जाता है। जो बद्रीनाथ को जाने वाले हाइवे से मिलता है। ट्रेकिंग करते हुए 6-7 दिन में सुगमता से झील पर पहुंचते हैं। वापस आने में समय कम लगता है।

फूलों की घाटी : बद्रीनाथ धाम के रास्ते में गोविंदघाट से 19 किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। घाट से ट्रेकिंग प्रारंभ होती है। घाटी की लंबाई 10 किमी और चौड़ाई 2 किमी है। 3000 मीटर से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित इस घाटी में अकसर अगस्त मास में जाया जाता है। उस समय वहां अत्यधिक फूल खिले होते हैं। अनायास ही आगंतुक कह उठता है कि यही स्वर्ग है।

इसके अलावा हर की दून का ट्रेक भी बहुत मशहूर है। देहरादून से मसूरी होते हुए परोला पहुंचा जाता है। वहां से ट्रेकिंग करके 7 से 8 दिन में हर की दून पहुंचते हैं। यहां के लिए मानसून का समय सबसे उपयुक्त है, जब सब ओर फूल ही फूल खिले होते हैं।

पूरे भारत की आस्था का केंद्र गंगोत्री ट्रेकिंग के लिए भी महत्वपूर्ण है। यहां से भागीरथी नदी के स्रोत गोमुख तक का ट्रेक बहुत प्रसिद्ध है। इसके ऊपर तपोवन (14000 फुट) और फिर ऊपर तपोवन होकर केदार डोम पर्वत चोटी के बेस कैंप तक ट्रेकिंग की जा सकती है। केदारनाथ ट्रेक (161 किमी), डोडीताल ट्रेक जिसके लिए दो से तीन दिन लगते हैं।

लगभग हर पर्वत शिखर के बेस कैंप तक ट्रेकिंग की जा सकती है। शर्त यही है कि कहीं भी टेक्निकल क्लाइंबिंग आड़े न आ जाए।

नौर का कुछ क्षेत्र आज भी इनर लाइन अर्थात् सामरिक दृष्टि से वर्जित क्षेत्र में आता है। परंतु अब सांगला, स्पीति, रोपा, बासपा, टिडोंग और भाबा इन सभी घाटियों की ट्रेकिंग की जा सकती है। सांगला घाटी में छितकुल (3500 मीटर) नामक गांव से आगे नहीं जाया जाता। तिब्बत से सटे इस क्षेत्र में लियो तथा पारगियल (6816 मीटर और 6791 मीटर) दो जुड़वां चोटियां हैं। रिकॉग पियो किन्नौर का हेडक्वार्टर है। यहां से किन्नर कैलाश के सुंदर दर्शन होते हैं तथा तीन दिन ट्रेकिंग करके 19000 फुट ही ऊंचाई पर शिवलिंग के दर्शन तथा पवित्र यात्रा की जाती है।

शिव के नित्य मार्ग पर

गढ़वाल और कुमाऊं में ट्रेकिंग रूट्स

पंचकेदार ट्रेक में 14 दिन का समय लगता है। भगवान शिव को पांच मंदिरों में अलग-अलग रूपों में देखा जा सकता है। रूट इस प्रकार है-केदारनाथ घाटी (5384 मीटर), मदमहेश्वर घाटी (3289 मीटर), तुंगनाथ घाटी (3810 मीटर), रुद्रनाथ घाटी (2286 मीटर) और कल्पनाथ घाटी (2134 मीटर) ये सभी स्थान गढ़वाल में हैं।

रूपकुंड ट्रेक: रूपकुंड झील त्रिशूल पर्वत पर 5029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कुमाऊं क्षेत्र में धराली से इसके लिए रास्ता जाता है। जो बद्रीनाथ को जाने वाले उच्च मार्ग (हाइवे) से मिलता है। एक अन्य रास्ता घाट नामक स्थान से भी है। ट्रेकिंग करते हुए 6-7 दिन में सुगमता से झील पर पहुंच जाते हैं। वापस आने में समय कम लगता है।

फूलों की घाटी (वैली ऑफ फ्लावर्स): ब्रदीनाथ धाम के रास्ते में गोविंदघाट से 19 किमी की दूरी पर फूलों की घाटी है। घाट से ट्रेकिंग प्रारंभ होती है। घाटी की लंबाई 10 किमी और चौड़ाई 2 किमी है। 3000 मीटर से 4000 मीटर तक की ऊंचाई पर स्थित इस घाटी में अकसर अगस्त मास में जाया जाता है। उस समय वहां अत्यधिक फूल खिले होते हैं। अनायास ही आगंतुक कह उठता है कि यही स्वर्ग है।

इसके अलावा हर की दून का ट्रेक भी बहुत मशहूर है। देहरादून से मसूरी होते हुए परोला पहुंचा जाता है। वहां से ट्रेकिंग करके 7 से 8 दिन में हर की दून पहुंचते हैं। यहां के लिए मानसून का समय सबसे उपयुक्त है, जब सब ओर फूल ही फूल खिले होते हैं। जबकि केदारनाथ से वासुकी ताल ट्रेक के लिए गौरीकुंड से 15 किमी चलकर केदारनाथ पहुंचकर एक रात विश्राम करके 6 किमी की ट्रेकिंग के बाद वासुकी ताल पहुंचते हैं।

वहीं नंदा देवी सेंक्चुअरी ट्रेक को लगभग 25 वर्ष तक बंद रखने के बाद अब सरकार ने ट्रेकिंग और पर्वतारोहण गतिविधियों के लिए खोल दिया है। जोशी मठ से इस ट्रेक के लिए जाया जाता है। लता नामक स्थान से लताखड़क होते हुए लगभग 8 दिन में अभ्यारण्य में पहुंचा जाता है। इस स्थान की सर एडमंड हिलेरी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

इधर खटलिंग-सहस्रताल-मसरताल ट्रेक के लिए देहरादून या ऋषिकेश से चलकर घंसाली या घुट्टु पहुंचते हैं। घुट्टु से ट्रेक प्रारंभ होता है। पांचवें दिन खटलिंग (3717 मीटर) और छठे दिन मसरताल (3675 मीटर) पर ट्रेकर्स पहुंच जाते हैं।

गंगोत्री समूचे भारत की आस्था का केंद्र है। केदारनाथ ट्रेक (161 किमी), डोडीताल ट्रेक जिसके लिए दो से तीन दिन लगते हैं। उत्तरकाशी से कल्याणी पहुंचकर 21 किमी की ट्रेकिंग दो दिन में की जाती है। इसके अतिरिक्त पिंडारी ग्लेशियर, मिलम ग्लेशियर डुंगा ग्लेशियर तथा कई अन्य प्रसिद्ध ट्रेकिंग रूट्स हैं।

लगभग प्रत्येक पर्वत शिखर के आधार शिविर (बेस कैंप) तक प्राय: ट्रेकिंग की जा सकती है। शर्त यही है कि कहीं भी टेक्निकल क्लाइंबिंग आड़े न आ जाए। ट्रेकिंग के उद्देश्य से गंगोत्री एक महत्वपूर्ण स्थान है। यहां से भागीरथी नदी के स्रोत गोमुख तक का ट्रेक बहुत प्रसिद्ध है। लेकिन इसके ऊपर तपोवन (14000 फुट) और फिर ऊपर तपोवन होकर केदार डोम पर्वत चोटी के बेस कैंप तक ट्रेकिंग की जा सकती है। सुंदर वन, नंदन वन, कीर्ति ग्लेशियर आदि अन्य ट्रेक हैं। केदार गंगा और रुद्रगंगा घाटियों में भी बेहद सुंदर ट्रेकिंग रूट्स हैं और समय लगता है।

पूर्वोत्तर के शिखरों पर

दार्जिलिंग में दार्जिलिंग में संदकफू ट्रेक 118 किमी का है। यदि हम एक और स्थान पर भी जाना चाहें तो 160 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। एक अन्य ट्रेक में दार्जिलिंग से संदकफू और फिर बिजनवारी होते हुए दार्जिलिंग वापस पहुंचते हैं। 153 किमी का यह ट्रेक है। कुछ अन्य लंबे ट्रेक भी यहां से किए जाते हैं।

सिक्किम में भारतीयों और विदेशियों, दोनों के लिए अनेक वर्जित क्षेत्र हैं। अत: सरकारी अनुमति कुछ स्थानों के लिए लेनी पड़ती है। पश्चिम सिक्किम में सभी जा सकते हैं। लोग पेमायांगत्से और ताशिडिंग जा सकते हैं और यदि ग्रुप हो तो जोंगरी भी। विश्व की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा के नेशनल पार्क में प्रवेश वर्जित है।

युकसम से जोकाथांग गोछाला ट्रेक: इस हाई आल्टीट्यूड ट्रेक में थुकसम से बाखिम (2500 मीटर), जोगरी 3780 मीटर, थानजिंग और लांबी झील 4818 मीटर, गोछाला 5336 मीटर स्थान शामिल है। फूलों वाला राज्य कहलाने वाले सिक्किम का यह सबसे सुंदर ट्रेक है। लांबी झील को मिनी मानसरोवर भी कहा जाता है।

उत्तर-पूर्व राज्यों में इस क्षेत्र में कोई भी रुचिकर ट्रेक अब तक ढूंढा नहीं गया है। यहां चोमोलहारी (23997 फुट) और कुलबा कांगड़ी (24997 फुट) दो चोटियां है। असम के पूर्वी छोर पर नामचे बरुआ है।

कैलाश मानसरोवर की यात्रा को सभी जानते हैं। इसमें लोपुलेख पास (18000 फुट) लांघना पड़ता है। एक नए चलन के अनुसार ट्रांस हिमालयन ट्रेक पर कुछ ट्रेकर्स जाने लगे हैं। कराकोरम और अन्य साथ लगी पर्वत श्रृंखलाएं इस ट्रेक में शामिल की जाती हैं।

मौसम, इक्विपमेंट, स्वास्थ्य और ट्रेकिंग का उचित समय ध्यान में रखते हुए आप सफल ट्रेकिंग करते हुए हिमालय से कई प्रश्नों का उत्तर पा सकते हैं और यह भी जान सकते हैं कि क्यों बार-बार जाते हैं हिमालय में लोग। आप भी जाएंगे बार-बार।

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